Question 10: निम्नलिखित गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए-
(क) 'कभी-कभी जो लोग ऊपर से बेहया दिखते हैं, उनकी जड़ें काफ़ी गहरी पैठी रहती हैं। ये भी पाषाण की छाती फाड़कर न जाने किस अतर गह्वर से अपना भोग्य खींच लाते हैं।'
(ख) 'रूप व्यक्ति-सत्य है, नाम समाज-सत्य। नाम उस पद को कहते हैं जिस पर समाज की मुहर लगी होती है। आधुनिक शिक्षित लोग जिसे 'सोशल सैक्शन' कहा करते हैं। मेरा मन नाम के लिए व्याकुल है, समाज द्वारा स्वीकृत, इतिहास द्वारा प्रमाणित, समष्टि-मानव की चित्त-गंगा में स्नात!'
(ग) 'रूप की तो बात ही क्या है! बलिहारी है इस मादक शोभा की। चारों ओर कुपित यमराज के दारुण निःश्वास के समान धधकती लू में यह हरा भी है और भरा भी है, दुर्जन के चित्त से भी अधिक कठोर पाषाण की कारा में रुद्ध अज्ञात जलस्रोत से बरबस रस खींचकर सरस बना हुआ है।'
(घ) हृदयेनापराजितः! कितना विशाल वह हृदय होगा जो सुख से, दुख से, प्रिय से, अप्रिय से विचलति न होता होगा! कुटज को देखकर रोमांच हो आता है। कहाँ से मिलती है यह अकुतोभया वृत्ति, अपराजित स्वभाव, अविचल जीवन दृष्टि!'
Answer:
(क) प्रसग – प्रस्तुत पक्तिया हजारी प्रसाद द्विवेदी द्वारा रचित निबध कुटज से लिया गया था इसमें लेखक कुटज की विशेषता बताते थे दूसरी और वह ऐसे लोगो की और सकेत करता था जो स्वभाव से बेशर्म होते थे I व्याख्या – इन पक्तियों के माध्यम से लेखक कुटज और उन व्यक्तियों के बारे में बात करते थे जो निराधार प्रतीत होते थे लेखक कहते थे कि कुटज अपने सिर के साथ एक ऐसे वातावरण में खड़ा था जहां अच्छे से अच्छे लोग एक वस्तुए आश्र्चर्य हो जाती थी कुटज पहाड़ो के चट्टानों पर पाया जाता था इसके अलावा वे मोजूदा जल स्त्रोतों से अपने लिए पानी उपलब्ध करता था I
(ख) प्रसग – प्रस्तुत पक्तिया हजारी प्रसाद दिवेदी द्वारा रचित निबध कुटज से लिया गया था इस निबध में लेखक ने कुटज वृक्ष की विशेषता बताई थी I व्याख्या – इन पक्तियों में लेखक ने नाम के विशेषता का वर्णन किया था हर किसी के जीवन में नाम का बहुत अधिक महत्त्व था एक व्यक्ति की पहचान उसके नाम से ही थी भले ही कोई हमे किसी व्यक्ति के रंग और आकार के बारे में कितना ही क्यों न बता देता परंतु जब तक हमे उस व्यक्ति का नाम नही पता चलेगा हम अच्छे से नही समझ पा सकते थे नाम ही इसान की पहचान से होती थी I
(ग) प्रसग – प्रस्तुत पक्तिया हजारी प्रसाद दिवेदी द्वारा रचित निबध कुटज से ली गई थी इस निबध में लेखक ने कुटज की विशेषताओं के बारे में बताया था I व्याख्या- प्रस्तुत पक्तियों में लेखक ने कुटज के सुंदरता के बारे में लिखा था लेखक का कहना था कि कुटज का वृक्ष देखने में बहुत सुदर था यदि हम वातावरण को देखेगे चारो और भयानक गर्मी थी ऐसा लगेगा कि मानो यमराज साँस ले रहे थे कुटज का वृक्ष भी बहुत गर्म थे लेकिन यह झुलसा नही था यह वृक्ष आच्छादित थे इसके साथ ही यह फलदार भी थे I
(घ) प्रसग प्रस्तुत पक्तिया हजारी प्रसाद दिवेदी द्वारा रचित निबध कुटज से ली गई थी इस निबध में लेखक ने कुटज की विशेषताओं के बारे में बताया था I व्याख्या – इन पक्तियों में लेखक ने कुटज की सुन्दरता के बारे में बताया था लेखक ने यह भी बताया था कि हमे केसी भी कठिन परिस्थतियो में हार नही मानना था बल्कि उस परिस्थति का डटकर सामना करना था हमे हर परिस्थति में धेर्य वान होना था हमे अपनी मेहनत और ताकत से हर कार्य को पूरा करना था हमे अपनी मेहनत और ताकत से हर कार्य को पूरा करना था I
Add Comment