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Chapter 1 : Sooradaas Kee Jhopadee
"सूरदास की झोपड़ी" एक मार्मिक कहानी है जो समाज में व्याप्त गरीब-अमीर के भेदभाव को उजागर करती है। सूरदास, जो एक निर्धन और नेत्रहीन व्यक्ति है, समाज की कठिनाइयों के बीच अपनी झोपड़ी में जीवन बिताता है। उसके पास भले ही धन न हो, लेकिन उसकी आत्मा पवित्र और दयालु है। कहानी में जब एक प्रभावशाली व्यक्ति उसकी झोपड़ी को हटाने की कोशिश करता है, तो सूरदास विनम्रता और सहिष्णुता का परिचय देता है।
इस कथा के माध्यम से लेखक प्रेमचंद (Premchand) ने समाज में सहानुभूति और मानवता के महत्व को रेखांकित किया है और यह बताया है कि सच्ची संपत्ति प्रेम और विनम्रता होती है।
Chapter 2 : Aarohan
"आरोहण" एक प्रेरणादायक आत्मकथात्मक रचना है जो व्यक्ति की दृढ़ इच्छाशक्ति और संघर्षशीलता का परिचय देती है। इसमें लेखक ने अपने जीवन के कठिन दौर और उन संघर्षों का उल्लेख किया है, जिनके सहारे वे आगे बढ़ते गए। इस अध्याय में 'आरोहण' का अर्थ कठिनाइयों के बावजूद जीवन में ऊपर उठना और नई ऊंचाइयों को छूना है।
लेखक 'संजीव (Sanjeev)' अपने अनुभवों से पाठकों को यह सिखाते हैं कि जीवन में चुनौतियाँ आती हैं, लेकिन उन्हें स्वीकार कर मेहनत और लगन के साथ आगे बढ़ना चाहिए। यह अध्याय पाठकों को आत्मविश्वास और संकल्प की प्रेरणा देता है।
Chapter 3 : Biskohar Kee Maatee
"बिस्कोहर की माटी" एक सुंदर यात्रा-वृत्तांत है, जिसमें लेखक विश्वनाथ त्रिपाठी (Vishwanath Tripathi) अपने जन्मस्थान बिस्कोहर की ओर लौटते हैं और वहां की मिट्टी, लोगों, और जीवन की सादगी का वर्णन करते हैं। इस अध्याय में लेखक ने अपने गाँव की संस्कृति, रीति-रिवाज, और ग्रामीण जीवन के सजीव चित्रण किए हैं। गाँव की मिट्टी से जुड़ी भावनाएँ और वहाँ की सरल जीवनशैली ने लेखक को गहरे से प्रभावित किया है।
यह कहानी उन जड़ों और आत्मीयता का परिचय कराती है, जो व्यक्ति को उसकी पहचान और आत्मीयता से जोड़ती है। पाठकों को यह कहानी ग्रामीण संस्कृति और प्रकृति से प्रेम का महत्व समझाने का प्रयास करती है।
Chapter 4 : Apana Maalava Khaoo-Ujaadoo Sabhyata Me
यह अध्याय लेखक के अपने क्षेत्र 'मालवा' के प्रति गहरे प्रेम और उसके बदलते स्वरूप के प्रति चिंता को प्रकट करता है। 'अपना मालवा खाऊ-उजाड़ू सभ्यता में' में लेखक ने अपने क्षेत्र की परंपराओं, प्राकृतिक सौंदर्य और सांस्कृतिक धरोहर का बखान किया है। इसके साथ ही, लेखक आधुनिकता और औद्योगिकीकरण के प्रभाव में उस क्षेत्र के उजड़ने और प्रकृति के नष्ट होने पर भी गहरी चिंता व्यक्त करते हैं।
इस रचना के माध्यम से लेखक यह संदेश देना चाहते हैं कि सभ्यता के विकास के साथ-साथ हमें अपनी जड़ों और परंपराओं को भी संरक्षित करना चाहिए ताकि आने वाली पीढ़ियाँ भी उनकी सुंदरता और महत्ता का अनुभव कर सकें।