Question 2: (क) टूटे से फिर ना मिले, मिले गाँठ परि जाय।
(ख) सुनि अठिलैहैं लोग सब, बाँटि न लैहैं कोय।
(ग) रहिमन मूलहिं सचिबो, फूलै फलै अघाय।
(घ) दीरघ दोहा अरथ के, आखर थोरे आहिं।
(ङ) नाद :रीझि तन देत मृग, नर धन हेत समेत
(च) जहाँ काम आवे सुई, कहा करे तरवारि।
(छ) पानी गए न ऊबरै, मोती, मानुष, चून।
Answer:
(क) कवि इस पक्ति द्वारा बता रहा था कि प्रेम का धागा एक बार टूट जाने पर फिर से जुड़ना कठिन होता था अगर जुड़ भी जाए पहले जेसा प्रेम नही रह जाता था I
(ख) कवि का कहना था कि अपने दुखों को किसी को बताना नही था दूसरे लोग सहायता नही करते थे उसका मजाक भी उड़ाये थे I
(ग) इन पक्तियों द्वारा कवि एक ईश्वर की आराधना पर जोर देते थे इसके समर्थन में कवि पेड़ की जड का उदाहरण देते थे कि जड़ को सीचने से पूरे पेड़ पर पर्याप्त प्रभाव हो जाता था I
(घ) दोहा एक ऐसा छद था जिसमे अक्षर कम होते थे पर उनमे बहुत गहरा अर्थ छिपा होता था I
(ड) जिस तरह संगीत की मोहनी तान पर रीझकर हिरण अपने प्राण तक त्याग देता था इसी प्रकार मनुष्य धन कला पर मुग्ध होकर धन अर्जित करने को अपना उद्धेश्य बना लेता था I
(च) हरेक छोटी वस्तु का अपना अलग महत्व होता था कपड़ा सिलने का कार्य तलवार नही कर सकता था वहा सुई ही काम आती थी इसलिए छोटी वस्तु की उपेक्षा नही करनी थी I
(घ) जीवन में पानी के बिना सब कुछ वेकार थे इसे बनाकर रहना था जेसे चमक या आब के बिना मोती बेकार थे पानी अथार्त सम्मान के बिना मनुष्य का जीवन बेकार था और बिना पानी के आटा या चूना को गुथा नही जा सकता था I
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