Question 3

1. उबल पड़ने वाले साधारण आदमी का इसमें केवल इतना ही दोष है कि वह कुछ भी नहीं समझता-बूझता, और दूसरे लोग उसे जिधर जोत देते हैं, उधर जुत जाता है।

2. यहाँ है बुद्धि पर परदा डालकर पहले ईश्वर और आत्मा का स्थान अपने लिए लेना, और फिर धर्म, ईमान, ईश्वर और आत्मा के नाम पर अपनी स्वार्थ-सिधि के लिए लोगों को लड़ाना-भिड़ाना।

3. अब तो, आपका पूजा-पाठ न देखा जाएगा, आपकी भलमनसाहत की कसौटी केवल आपका आचरण होगी।

4. तुम्हारे मानने ही से मेरा ईश्वरत्व कायम नहीं रहेगा, दया करके, मनुष्यत्व को मानो, पशु बनना छोड़ो और आदमी बनो!

Answer

1. लेखक के अनुसार साधारण और अपनी सोच न रखने वाले व्यक्ति को अच्छे बुरे की पहचान ही नही होती थी वी तो अपने मार्गदर्शक को ही अपना सबकुछ मानता था उसके खे अनुसार ही कार्य करता था I                                                                                                            
2. समाज में अपने आप को धर्म को ठेकेदार मानने वाले लोग साधारण जनता को ईश्वरके नाम पर डराते थी फिर अपने आप को ही ईश्वर का प्रतिनिधि बताते हुए है अपने अनुसार
उनसे कर्म करवाते थे I                                                                                                            
3. लेखक के अनुसार चालाक लोगो की चालाकी अब ज्यादा दिन तक नही चलेगी थी धर्म के नाम पर अब लोगो को गुमराह नही किया जा सकता था I

4. लेखक के अनुसार अब तो ईश्वर भी लोगो की चालाकी को समझते हुए उनसे कहता था कि तुम भले ही मुझे न मानो पर मेरे नाम पर गंदा व्यापार मत करो मेने तुम्हे मनुष्य बनाकर धरती पर भेजा था I

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