हरिवंश राय बच्चन की अग्निपथ कविता का प्रतिपाद्य | Harivansh Rai Bachchan Ki Agneepath Kavita Ka Pratipadya

 हरिवंश राय बच्चन की अग्निपथ कविता का प्रतिपाद्य | Harivansh Rai Bachchan Ki Agneepath Kavita Ka Pratipadya

हरिवंश राय बच्चन हिंदी साहित्य की उत्तर-छायावादी कविता की व्यक्तिवादी काव्यधारा के आलोक स्तंभ हैं। मानव भावना, अनुभूति, प्राणों की ज्वाला तथा जीवन संघर्ष के आत्मनिष्ठ कवि ने अपने काव्य द्वारा हिंदी साहित्य का ही नहीं अपितु विश्व साहित्य का भी सौंदर्यवर्धन किया है। जीवन की मधुरता और कटुता का सम्मान करने वाले बच्चन ने अपने काव्य में भोगी-झेली, अनुभूतियों का बहुत ही सुंदर भाव-प्रवण, मार्मिक चित्रण अत्यंत सरल और सहज भाषा में किया है। ‘आपबीती में जगबीती’ को बयां करने वाले बच्चन एक स्थान पर कहते भी हैं “मेरा जीवन सबका साखी “संघर्षों और तूफानों से जूझते हुए कालजयी साहित्य का प्रणयन करने वाले बच्चन का साहित्य मानव-मात्र के लिए प्रेरणा का स्रोत है। बच्चन हर प्रतिकूल से भरी प्रतिकूल परिस्थिति में भी दृढ़ता से खड़े होकर उन्हें अपने अनुकूल बना लेने की अदम्य शक्ति रखते हैं। अटूट धैर्य, अपने आत्मविश्वास के बल पर वह मुस्कुराकर कठिनाइयों को ललकारतें हैं और हर बार यही कहते हैं कि –

“विपदाओं की अंधवायु में
तने रहो जीवन के तरुवर
अपने सौरभ की मस्ती में
सने रहो जीवन के तरुवर “
(मधुबाला -बच्चन रचनावली भाग-1 पृष्ठ 100)

अंधियारा देश मिलने पर भी जो अपने रागों का दीप जलाकर उजाला करने का साहस रखता हो, ऐसे आशावान, साहसी कवि को मानव जीवन हर रूप में प्रिय है। जीवन से बढ़कर उसके लिए कुछ भी नहीं क्योंकि उसने जीवन के अग्निपथ पर अश्रु-श्वेद-रक्त से लथपथ होकर भी दृढ़ता से चलने की शपथ ली है, फिर जीवन चाहे कोई भी रूप-रंग लेकर आए लेकिन वह कभी भी थकेगा नहीं, हारेगा नहीं और रुकेगा नहीं, क्योंकि उसकी आस्था है कि –

“जीवन है जीने के लायक
जीवन है कुछ करने के लायक “
(आकुल -अंतर ,बच्चन रचनावली भाग 1 पृष्ठ 295 )

जीवन -संग्राम में खड़े होकर जो मधुगीत लिखता हो ऐसे कवि की संघर्षशीलता का अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि वह स्वयं कह उठता है 

“मैं तरंगों से लड़ा हूँ और तगड़ा भी पड़ा हूँ”

क्योंकि महानाश में महासृजन और महामरण में महाजीवन संभव है ऐसा विश्वास बच्चन हमेशा अपने साथ रखते हैं। जीवन जीने की लालसा, जीवन में अपने सपनों को पूरा करने की अदम्य इच्छा मानव को हर संग्राम का डटकर मुकाबला करने की प्रेरणा देती है इसलिए बच्चन “अग्निपथ” कविता रचते हैं।

मानव और मानवता का यह अमर गायक, संघर्षशील, दृढ़ संकल्पी और आशावादी  कवि है। जो जानता है कि –

“नहीं भागता संघर्षों से
इसलिए इंसान बड़ा है “

क्षतशीश मगर नतशीश न होने वाले बच्चन कहते हैं –

” झुकी हुई अभिमानी गर्दन
बंधे हाथ नत- निष्प्रभ लोचन
यह मनुष्य का चित्र नहीं है
पशु का है रे कायर !
प्रार्थना मत कर! मत कर! मत कर !”

मानव का जीवन अग्निपथ के समान है। यहाँ अग्निपथ शब्द अनेकानेक अर्थों को अपने अंदर समाहित किए हुए है। यदि हम साधारण दृष्टि से विश्लेषण करें तब ‘अग्निपथ का अर्थ होगा आग से भरा हुआ रास्ता, अंगारों से भरा हुआ रास्ता’ लेकिन आग और अंगार क्या है? मानव जीवन में आग और अंगार से क्या तात्पर्य है। तब यह शब्द अपने प्रतीकात्मक रुप में यह बहुत विस्तृत अर्थ ग्रहण कर लेता है। मानव का जीवन अग्नि के पथ के समान हैं अर्थात् संघर्षों, दुख, आपदाओं प्रतिकूलताओं, नकारात्मक परिस्थितियों, असफलताओं और हताशा-निराशा से भरा पथ ही अग्निपथ है। मानव -जीवन सरल नहीं होता और ऐसे अग्निपथ पर चलना भी मानव के लिए आसान नहीं होता क्योंकि विपरीत परिस्थितियों में अपने सपनों के लिए परिश्रम करना, मेहनत करना, मानव के लिए कोई आसान बात नहीं  है।लेकिन फिर भी कवि कहता है –

“है अंधेरी रात पर दीवा जलाना कब मना है ” अर्थात चाहे कितना ही अंधेरा क्यों ना हो लेकिन दीया जलाने से हमें कोई नहीं रोक सकता। ऐसी सकारात्मक सोच रखने वाले बच्चन मानव को यह प्रेरणा देते हैं कि अपनी आंतरिक  शक्ति, अपने आत्मविश्वास और दृढ़ता, अपनी अदम्य संघर्ष-चेतना के बल पर उसे हर परिस्थिति में दुगने साहस के साथ विपरीत परिस्थितियों का सामना करना चाहिए तभी वह सच्चा मानव कहलाने का अधिकारी होगा।

अग्निपथ कविता हारे हुए, थके हुए, रुके हुए, झुके हुए मनुष्य को एक नए उत्साह से भर देती है और उसे निरंतर संघर्षशील रहने की प्रेरणा देती है। कभी ना हार मानने  का अमर संदेश देती है। परंतु मानव निरंतर चलते -चलते, संघर्ष करते-करते हार भी जाता है, थक भी जाता है और ऐसी स्थिति में वह अपने लिए कोई आश्रय ढूंढता है, कोई सहारा पाना चाहता है, कहीं विश्राम करना चाहता है, कहीं  रुकना-ठहरना चाहता है लेकिन बच्चन कहते हैं कि अपने स्वाभिमान की रक्षा करते हुए हे मानव! तू किसी भी परिस्थिति में, किसी भी व्यक्ति विशेष से कोई भी सहायता ना ले,

“वृक्ष हों भले खड़े ;
हों घने हों बड़े,
एक पत्र छाँह भी,
मांग मत ,मांग मत ,मांग मत,
अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ ।”

अपनी योग्यता, अपने आत्मविश्वास और परिश्रम पर भरोसा रखते हुए मनुष्य को अपने कर्म-पथ पर आगे बढ़ना चाहिए और कहीं पर भी, किसी से भी मदद  मांगने की  आवश्यकता नहीं है क्योंकि इतने संघर्ष के पश्चात जो सफलता प्राप्त होगी उसके नितांत अधिकारी तुम ही होगे अन्यथा मदद करने वाले के तुम आजीवन ऋणी रहोगे और उसके एहसानों के कारण तुम्हारे मन पर सदैव एक भार रहेगा। अतः हे मनुष्य! तू स्वयं पर भरोसा रख और निरंतर अपने जीवन के अग्निपथ पर दृढ़ता के साथ चलता रह।

मांग मत, मांग मत, कर शपथ, लथपथ, अग्निपथ जैसे शब्दों को बार-बार कविता में प्रयोग कर कवि ने यहाँ पर मनुष्य की दृढ़ इच्छाशक्ति, संघर्ष- चेतना और कभी ना हार मानने वाली प्रवृत्ति का साक्षात्कार करवाया है।

बच्चन की लोकप्रियता का कारण उनकी कविता पाठ की कर्णप्रिय शैली नहीं है अपितु मानव को उसकी संपूर्ण साधारणतया में चित्रित कर उसकी असाधारणता को  चित्रित करने में है। जिस कवि ने स्वयं अपने जीवन में अनेकानेक अवरोध सहे हों और फिर भी वह नहीं रुका हो तो वह अपने समाज को, अपने देश को, हर मानव -मात्र को भी यही संदेश ही संप्रेषित करेगा कि “चाहे कांटों की बदतमीजियों से उसकी कमीज तार-तार हो जाए, पाँव लहू-लुहान हो जाए, तन-मन जर्जर क्लांत हो जाए लेकिन वह कभी नहीं मिटेगा, कभी नहीं गिरेगा और वे अपने कंठ से सदैव जीवन की कटुता और मधुरता के गीत ईमानदारी से गायेगा।

“अग्निपथ ,अग्निपथ ,अग्निपथ” और एक दिन अग्निपथ की तमाम बाधाओं को पार कर वह सुंदर, शांत कल्याणकारी पथ पर चलने का सुख भी प्राप्त करेगा।  मानव जीवन की राह बहुत कष्टदायक है, उसपर चलना आसान नहीं होता, बहुत कुछ झेलना- सहना, बहुत बार स्वयं को टूटने से भी बचाना होता है। बार-बार संघर्ष करते-करते मनुष्य के मन में निराशा का भाव भी आ जाता है और वह कहता है कि ‘अब मुझसे नहीं होगा, अब मुझमें ताकत नहीं रही या मैं नहीं कर सकता’ लेकिन बच्चन ऐसी परिस्थिति में भी मानव को कहते हैं कि हे! मनुष्य तुझे अपने आप से यह वादा करना होगा, तुझे यह शपथ लेनी होगी कि चाहे कितना ही विषमताओं से और कठिनाइयों से भरा हुआ मार्ग हो पर तू कभी रुकेगा, थमेगा नहीं, झुकेगा नहीं।

“तू न थकेगा कभी,
तू न रुकेगा कभी;
तू न मुड़ेगा  कभी,
कर शपथ, कर शपथ, कर शपथ,
अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ।

कर्म- पथ पर चलते -चलते मानव का थक जाना स्वाभाविक है। थकने पर थोड़ा विश्राम भले ही कर लेना लेकिन पीछे मुड़कर मत देखना, लौटने की बात मन में न लाना क्योंकि जिस हिम्मत के साथ तू आगे बढ़ा है और तूने अपनी मंजिल को प्राप्त करने के लिए जो संघर्ष किया है यदि तू रुक गया, थम गया और पीछे मुड़ कर चला गया तो तेरा सारा संघर्ष, परिश्रम व्यर्थ हो जाएगा। ऐसी स्थिति में जीवन और भी मुश्किल हो जायेगा। अतः  रास्ता कितना ही कठिन क्यों ना हो परंतु तुम्हें अपने आप से किए हुए वादे पर अमल रहना होगा, निरंतर चलना होगा, आगे बढ़ना होगा क्योंकि रुकना- मुड़ना -थकना -झुकना तेरे कमजोर होने की निशानी होगी और जीवन बढ़ने का नाम है, जीवन चलने का नाम है, जीवन गतिशील रहने में  है। इसलिए  मनुष्य की महता और  भलाई इसी में है कि वह निरंतर चलता रहे और अपने सपने को साकार करने के लिए सदैव संघर्षशील रहे। मार्ग के मध्य  से लौटना, पीछे हटना, मुड़ना  उसके लिए हितकर नहीं होगा। अंत में बच्चन मानव की अद्भुत, अद्वितीय, अदम्य, अपराजेय संघर्ष-चेतना के महत्व को प्रतिपादित करते हुए कहते हैं कि –

“यह महान दृश्य है
चल रहा मनुष्य है
अश्रु-श्वेद- रक्त से,
लथपथ, लथपथ, लथपथ
अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ।”

मनुष्य अपने जीवन की तमाम समस्याओं, कठिनाइयों, धूप- धूल -आंधी-तूफ़ान, निराशा, अंधकार का प्रकोप झेलते हुए भी सदा -सर्वदा आगे बढ़ता रहता है और इस क्रम में बहुत बार लहू-लुहान हो जाता है, अतिरिक्त श्रम के कारण उसके शरीर से श्वेद की धारा निरंतर प्रवाहित होती रहती है और बार-बार संघर्ष करते-करते उसकी हिम्मत टूटती है जिससे वह निराश होकर रुदन क्रंदन भी करता है, उसकी आंखों से अश्रुधारा भी प्रवाहित होती है  लेकिन “नहीं भागता संघर्षों से इसलिए इंसान बड़ा है” की तर्ज पर यहाँ बच्चन कहते हैं कि मनुष्य की महत्ता, उसकी गरिमा, उसकी संघर्ष- चेतना में ही निहित है। वह हर प्रतिकूल से प्रतिकूल परिस्थिति को भी अपने अनुकूल बना लेने का साहस, हिम्मत और जज्बा रखता है और अंत में अपने स्वप्न को साकार करता है। इसलिए हे! मानव तू अपने आप से वादा कर कि चाहे तू अश्रु- श्वेद-रक्त से लथपथ ही क्यों ना हो जाए लेकिन अपने अग्निपथ पर चलना नहीं छोड़ेगा। क्योंकि अंत में विजय मानव के साहस की होगी। एक ना एक दिन तो इस अग्निपथ को अपनी ज्वलनशीलता त्यागनी ही होगी। यह अग्निपथ अपनी तमाम नकारात्मक प्रतिकूलता को  त्याग देगा और तेरा जीवन निश्चित रूप से फूलों भरा रास्ता होगा और तेरे अग्निपथ पर फूल भी बिछ जाएंगे।तब तेरे स्वप्न साकार हो जाएंगे। तू सफलता के नये इतिहास रच पायेगा।

अतः

“कर शपथ ,कर शपथ, कर शपथ —-
तू न थकेगा कभी,
तू न रुकेगा कभी,
तू न मुड़ेगा कभी,——–
अग्निपथ ,अग्निपथ ,अग्निपथ ।”

“बच्चन की भाषा अनुभूति की तीव्रता और गहनता से सप्राण, सजीव एवं स्वर -मधुर बन गई है। उसमें परंपरा का सौष्ठव है, वह साहित्यिक होते हुए भी बोलचाल के निकट है। वह सहज, रसभीनी, भाव -भीगी, गतिद्रवित, प्रेरणा -स्पर्शी, अर्थ कल्पित व्यथा मथित आनंद गंधी भाषा है।”

बच्चन खड़ी बोली के ऐसे लोकप्रिय कवि हैं जिन्होंने खड़ी बोली को जनसाधारण के ह्रदय में पुनः स्थापित करने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। बच्चन की काव्य-भाषा में भव्यता के साथ-साथ सहजता और सरलता है, यही उनकी उपलब्धि है। भाषा में  संगीतात्मकता, प्रतीकात्मकता, बिंबात्मकता, अलंकारिकता का सौंदर्य विद्यमान है।

वास्तव में बच्चन का सारा काव्य जीवन के हलाहल अर्थात् विष को मधु अर्थात् अमृत में बना देने की कठोर तपस्या का ही परिणाम है। जो  सदैव मानव -मात्र को  विपदाओं की अंधवायु में दृढ़ता से खड़े रहने की, अंधेरी रात में दीपक प्रज्वलित करने की, अग्निपथ पर निरंतर चलने की प्रेरणा देता रहेगा। सचमुच बच्चन मानव -जीवन के अमर गायक हैं। हिंदी साहित्य उनको पाकर धन्य हो गया।

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डॉ.अनु शर्मा
असिस्टेंट प्रोफेसर
हिंदी – विभाग
लक्ष्मीबाई महाविद्यालय
(बी. काम प्रोग्राम हिंदी ब ½ सेमेस्टर के विद्यार्थियों लिए विशेष)

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4 Comments

  • Best answer for this question. This answer helps me a lot to understand the question very well.

  • उत्तम व्याख्या। मानव जीवन के अग्निपथ को उत्तम तरीके से वर्णित किया है।

  • Bahut accha likha hai

  • Bacchan ji ne apni kavita ke madhyam se manav ko sandesh diya hai..ki kis tarah visham paristhiyon mein bhi apne aapko use sthan pe banae rakhna hai ,aur jivan mein kabhi haar nahin manana hai ,kabhi piche mud ke nahi dekhna hai ,kyu ki ant mein bhi saflta nischit roop se milti hai….aur is kavita ki vyakhya bhut hi sundar & bhut hi spasht traike se ki gai hai..bhut hi adbudh traike vyakhya ki gayi hai….atiutam….

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