Question 1

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-

1.प्रस्तुत कविता में ‘दीपक’ और ‘प्रियतम’ किसके प्रतीक हैं?

2. दीपक से किस बात का आग्रह किया जा रहा है और क्यों ?

3. ‘विश्व-शलभ’ दीपक के साथ क्यों जल जाना चाहता है?

4. आपकी दृष्टि में ‘मधुर मधुर मेरे दीपक जल’ कविता का सौंदर्य इनमें से किस पर निर्भर है-
(क) शब्दों की आवृत्ति पर।
(ख) सफल बिंब अंकन पर।

5. कवयित्री किसका पथ आलोकित करना चाह रही है?

6. कवयित्री को आकाश के तारे स्नेहहीन से क्यों प्रतीत हो रहे हैं?

7. पतंगा अपने क्षोभ को किस प्रकार व्यक्त कर रहा है?

8. कवयित्री ने दीपक को हर बार अलग-अलग तरह से ‘मधुर मधुर, पुलक-पुलक, सिहर-सिहर और विहँस-विहँस’ जलने को क्यों कहा है? स्पष्ट कीजिए।

9. नीचे दी गई काव्य-पंक्तियों को पढ़िए और प्रश्नों का उत्तर दीजिए-
जलते नभ में देख असंख्यक,
स्नेहहीन नित कितने दीपक;
जलमय सागर का उर जलता,
विद्युत ले घिरता है बादल !
विहँस विहँस मेरे दीपक जल !

  1. ‘स्नेहहीन दीपक’ से क्या तात्पर्य है?
  2. सागर को ‘जलमय’ कहने का क्या अभिप्राय है और उसका हृदय क्यों जलता है?
  3. बादलों की क्या विशेषता बताई गई है?
  4. कवयित्री दीपक को ‘विहँस विहँस’ जलने के लिए क्यों कह रही हैं?

Answer

1. प्रस्तुत कविता में दीपक आस्था का और प्रियतम कवयित्री के आराध्य देव का प्रतीक था I

2. महादेवी वर्मा ने दीपक से हर अच्छी बुरी परिस्थति में वह निरतर जलते रहने का आग्रह किया था वह आग्रह इसलिए करती थी क्योकि वे अपने जीवन में ईश्वर का स्थान सबसे बड़ा मानती थी ईश्वर को पाना ही उनका लक्ष्य था I

3. विश्व शलभ अर्थात जिस प्रकार पतगा दीये के प्रति प्रेम के कारण उसकी लो में जलकर अपना जीवन समाप्त कर देता था इसी प्रकार संसार के लोग भी अपने अहकार मोह लोभ तथा विषय विकारों को समाप्त करते थे I

4. इस कविता की सुदरता दोनों प्र निर्भर थी पुनरुक्ति रूप में सबध का प्रयोग था मधुर मधुर युग युग सिहर सिहर आदि कविता को लयबद्ध बनाते थे प्रभावी बनाने में सक्षम थी दूसरी और  बिब योजना भी सफल थी I



5. कवियित्री अपने मन के आस्था रुपी दीपक से अपने परमात्मा रुपी प्रियतम का पथ आलोकित करना चाहती थी I

6. कवियित्री को आकाश के तारे स्नेनहींन नजर आते थे क्योकि इनमे भाव नही था यह यत्रवत होकर अपना कर्तव्य निभाते थे प्रेम और परोपकार की भावना समाप्त हो गई थी I

7. जिस प्रकार पतगा दीये की लो में अपना सब कुछ समाप्त करना चाहता था पर कर नही पाता उसी तरह मनुष्य भी परमात्मा रुपी लो में जलकर अपना अस्तित्व विलीन करना चाहता था I

8. कवयित्री अपने आत्मदीपक को तरह तरह से जलने के लिए कहती थी मीठी प्रेममयी ख़ुशी के साथ कापते थे उत्साह और प्रसन्नता से अपने अस्तित्व को मिटाकर ज्ञान रुपी अधकार को दूर करके आलोक फेलाने के लिए हर बार अलग अलग तरह से जलने को कहते थे I

9. 1. बादल स्वभाव से परोपकारी होते थे बादलो में जल भरा रहता था और वे वर्षा करके संसार को हराभरा बनाते थे बिजली की चमक से संसार को आलोकित करते थे I
 2. स्नेहहीन दीपक से तात्पर्य प्रभु भक्ति से थी उसमे कोई भाव नही होता था वह यत्रवत होकर अपना कर्तव्य निभाता था I
3. कवयित्री दीपक को उत्साह से तथा प्रसंन्नता से जलने के लिए कहते थे क्योकि वे अपने आस्था रुपी दीपक की लो से सभी के मन में आस्था जगाना चाहती थी I

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