निम्नलिखित गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए-
(क) 'कभी-कभी जो लोग ऊपर से बेहया दिखते हैं, उनकी जड़ें काफ़ी गहरी पैठी रहती हैं। ये भी पाषाण की छाती फाड़कर न जाने किस अतर गह्वर से अपना भोग्य खींच लाते हैं।'
(ख) 'रूप व्यक्ति-सत्य है, नाम समाज-सत्य। नाम उस पद को कहते हैं जिस पर समाज की मुहर लगी होती है। आधुनिक शिक्षित लोग जिसे 'सोशल सैक्शन' कहा करते हैं। मेरा मन नाम के लिए व्याकुल है, समाज द्वारा स्वीकृत, इतिहास द्वारा प्रमाणित, समष्टि-मानव की चित्त-गंगा में स्नात!'
(ग) 'रूप की तो बात ही क्या है! बलिहारी है इस मादक शोभा की। चारों ओर कुपित यमराज के दारुण निःश्वास के समान धधकती लू में यह हरा भी है और भरा भी है, दुर्जन के चित्त से भी अधिक कठोर पाषाण की कारा में रुद्ध अज्ञात जलस्रोत से बरबस रस खींचकर सरस बना हुआ है।'
(घ) हृदयेनापराजितः! कितना विशाल वह हृदय होगा जो सुख से, दुख से, प्रिय से, अप्रिय से विचलति न होता होगा! कुटज को देखकर रोमांच हो आता है। कहाँ से मिलती है यह अकुतोभया वृत्ति, अपराजित स्वभाव, अविचल जीवन दृष्टि!'
(क) प्रसग – प्रस्तुत पक्तिया हजारी प्रसाद द्विवेदी द्वारा रचित निबध कुटज से लिया गया था इसमें लेखक कुटज की विशेषता बताते थे दूसरी और वह ऐसे लोगो की और सकेत करता था जो स्वभाव से बेशर्म होते थे I व्याख्या – इन पक्तियों के माध्यम से लेखक कुटज और उन व्यक्तियों के बारे में बात करते थे जो निराधार प्रतीत होते थे लेखक कहते थे कि कुटज अपने सिर के साथ एक ऐसे वातावरण में खड़ा था जहां अच्छे से अच्छे लोग एक वस्तुए आश्र्चर्य हो जाती थी कुटज पहाड़ो के चट्टानों पर पाया जाता था इसके अलावा वे मोजूदा जल स्त्रोतों से अपने लिए पानी उपलब्ध करता था I
(ख) प्रसग – प्रस्तुत पक्तिया हजारी प्रसाद दिवेदी द्वारा रचित निबध कुटज से लिया गया था इस निबध में लेखक ने कुटज वृक्ष की विशेषता बताई थी I व्याख्या – इन पक्तियों में लेखक ने नाम के विशेषता का वर्णन किया था हर किसी के जीवन में नाम का बहुत अधिक महत्त्व था एक व्यक्ति की पहचान उसके नाम से ही थी भले ही कोई हमे किसी व्यक्ति के रंग और आकार के बारे में कितना ही क्यों न बता देता परंतु जब तक हमे उस व्यक्ति का नाम नही पता चलेगा हम अच्छे से नही समझ पा सकते थे नाम ही इसान की पहचान से होती थी I
(ग) प्रसग – प्रस्तुत पक्तिया हजारी प्रसाद दिवेदी द्वारा रचित निबध कुटज से ली गई थी इस निबध में लेखक ने कुटज की विशेषताओं के बारे में बताया था I व्याख्या- प्रस्तुत पक्तियों में लेखक ने कुटज के सुंदरता के बारे में लिखा था लेखक का कहना था कि कुटज का वृक्ष देखने में बहुत सुदर था यदि हम वातावरण को देखेगे चारो और भयानक गर्मी थी ऐसा लगेगा कि मानो यमराज साँस ले रहे थे कुटज का वृक्ष भी बहुत गर्म थे लेकिन यह झुलसा नही था यह वृक्ष आच्छादित थे इसके साथ ही यह फलदार भी थे I
(घ) प्रसग प्रस्तुत पक्तिया हजारी प्रसाद दिवेदी द्वारा रचित निबध कुटज से ली गई थी इस निबध में लेखक ने कुटज की विशेषताओं के बारे में बताया था I व्याख्या – इन पक्तियों में लेखक ने कुटज की सुन्दरता के बारे में बताया था लेखक ने यह भी बताया था कि हमे केसी भी कठिन परिस्थतियो में हार नही मानना था बल्कि उस परिस्थति का डटकर सामना करना था हमे हर परिस्थति में धेर्य वान होना था हमे अपनी मेहनत और ताकत से हर कार्य को पूरा करना था हमे अपनी मेहनत और ताकत से हर कार्य को पूरा करना था I
'कुटज' पाठ के आधार पर सिद्ध कीजिए कि 'दुख और सुख तो मन के विकल्प हैं।'
'कुट', 'कुटज' और 'कुटनी' शब्दों का विश्लेषण कर उनमें आपसी संबंध स्थापित कीजिए।
लेखक क्यों मानता है कि स्वार्थ से भी बढ़कर जिजीविषा से भी प्रचंड कोई न कोई शक्ति अवश्य है? उदाहरण सहित उत्तर दीजिए।
कुटज क्या केवल जी रहा है- लेखक ने यह प्रश्न उठाकर किन मानवीय कमज़ोरियों पर टिप्पणी की है?
कुटज को 'गाढ़े का साथी' क्यों कहा गया है?
'कुटज' हम सभी को क्या उपदेश देता है? टिप्पणी कीजिए।
'नाम' क्यों बड़ा है? लेखक के विचार अपने शब्दों में लिखिए।
कुटज किस प्रकार अपनी अपराजेय जीवनी-शक्ति की घोषणा करता है?
कुटज के जीवन से हमें क्या सीख मिलती है?
'हारेंहु खेल जितावहिं मोही' भरत के इस कथन का क्या आशय है?
अगहन मास की विशेषता बताते हुए विरहिणी (नागमती) की व्यथा-कथा का चित्रण अपने शब्दों में कीजिए।
प्रियतमा के दुख के क्या कारण हैं?
देवी सरस्वती की उदारता का गुणगान क्यों नहीं किया जा सकता?
कवि ने 'चाहत चलन ये संदेसो ले सुजान को' क्यों कहा है?
लेखक ने अपने पिता जी की किन-किन विशेषताओं का उल्लेख किया है?
बालक से उसकी उम्र और योग्यता से ऊपर के कौन-कौन से प्रश्न पूछे गए?
पसोवा की प्रसिद्धि का क्या कारण था और लेखक वहाँ क्यों जाना चाहता था?
संवदिया कि क्या विशेषताएँ हैं और गाँववालों के मन में संवदिया की क्या अवधारणा हैं?
लेखक ने कवि की तुलना प्रजापति से क्यों की है?
लेखक का हिंदी-साहित्य के प्रति झुकाव किस प्रकार बढ़ता गया?
चार हाथ न लग पाने पर मिल मालिक की समझ में क्या बात आई?
आधी-आधी फसल हाथी ने किस तरह बाँटी?
निम्नलिखित का आशय स्पष्ट कीजिए-
(क) ‘अपनी आँखों से जगह देखकर, अपने हाथ से चुने हुए मिट्टी के डगलों पर भरोसा करना क्यों बुरा है और लाखों करोड़ों कोस दूर बैठे बड़े-बड़े मट्टी और आग के ढेलों-मंगल, शनिश्चर और बृहस्पति की कल्पित चाल के कल्पित हिसाब का भरोसा करना क्यों अच्छा है।’
(ख) ‘आज का कबूतर अच्छा है कल के मोर से, आज का पैसा अच्छा है कल की मोहर से। आँखों देखा ढेला अच्छा ही होना चाहिए लाखों कोस के तेज पिंड से।’
इन मुहावरों पर ध्यान दीजिए-
मटियामेट होना, आफत टलना, न फटकना
‘किंतु यह भ्रम है …………….. डूब जाती हैं।’ इस गद्यांश को भूतकाल की क्रिया के साथ अपने शब्दों में लिखिए।
साझे की खेती के बारे में हाथी ने किसान को क्या बताया?
हाथी ने खेती की रखवाली के लिए क्या घोषणा की?
(क) 'अपनी आँखों से जगह देखकर, अपने हाथ से चुने हुए मिट्टी के डगलों पर भरोसा करना क्यों बुरा है और लाखों करोड़ों कोस दूर बैठे बड़े-बड़े मट्टी और आग के ढेलों-मंगल, शनिश्चर और बृहस्पति की कल्पित चाल के कल्पित हिसाब का भरोसा करना क्यों अच्छा है।'
(ख) 'आज का कबूतर अच्छा है कल के मोर से, आज का पैसा अच्छा है कल की मोहर से। आँखों देखा ढेला अच्छा ही होना चाहिए लाखों कोस के तेज पिंड से।'
(क) 'कवि की यह सृष्टि निराधार नहीं होती। हम उसमें अपनी ज्यों-की-त्यों आकृति भले ही न देखें, पर ऐसी आकृति ज़रूर देखते हैं जैसी हमें प्रिय है, जैसी आकृति हम बनाना चाहते हैं।'
(ख) 'प्रजापति-कवि गंभीर यथार्थवादी होता है, ऐसा यथार्थवादी जिसके पाँव वर्तमान की धरती पर हैं और आँखें भविष्य के क्षितिज पर लगी हुई हैं।'
(ग) 'इसके सामने निरुद्देश्य कला, विकृति काम-वासनाएँ, अहंकार और व्यक्तिवाद, निराशा और पराजय के 'सिद्धांत' वैसे ही नहीं ठहरते जैसे सूर्य के सामने अंधकार।'