हिंदी-उर्दू के विषय में लेखक के विचारों को देखिए। आप इन दोनों को एक ही भाषा की दो शैलियाँ मानते हैं या भिन्न भाषाएँ?
हम दोनों को भिन्न भाषाए मानते थे मुगलों के आगमन के साथ भारत में उर्दू का भी आगमन हुआ था अग्रेजो के समय में आजादी पाने के लिए एक ऐसी भाषा के विकास की आवश्यकता हुई थी जो जन भाषा बन सकता था अत वह काल सक्रमण का काल है भरतेन्दु जी ने खड़ी बोली में लिखना आरभ कर दिया था उस समय सभी ने उर्दू के साथ साथ हिंदी का भी प्रयोग करा था I
'दीप अकेला' के प्रतीकार्थ को स्पष्ट करते हुए बताइए कि उसे कवि ने स्नेह भरा, गर्व भरा एवं मदमाता क्यों कहा है?
"बालक बच गया। उसके बचने की आशा है क्योंकि वह लड्डू की पुकार जीवित वृक्ष के हरे पत्तों का मधुर मर्मर था, मरे काठ की अलमारी की सिर दुखानेवाली खड़खड़ाहट नहीं" कथन के आधार पर बालक की स्वाभाविक प्रवृत्तियों का उल्लेख कीजिए।
काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए-
हेम कुंभ ले उषा सवेरे-भरती ढुलकाती सुख मेरे
मदिर ऊँघते रहते सब-जगकर रजनी भर तारा।
'कुटज' पाठ के आधार पर सिद्ध कीजिए कि 'दुख और सुख तो मन के विकल्प हैं।'
बालक द्वारा इनाम में लड्डू माँगने पर लेखक ने सुख की साँस क्यों भरी?
काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए-
(क) श्रमित स्वप्न की मधुमाया ......... तान उठाई।
(ख) लौटा लो .......................... लाज गँवाई।
कवि ने आशा को बावली क्यों कहा है?
संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए-
(क) झूठी बतियानि की पत्यानि तें उदास है, कै ...... चाहत चलन ये संदेशो लै सुजान को।
(ख) जान घनआनंद यों मोहिं तुम्है पैज परी ....... कबहूँ तौ मेरियै पुकार कान खोलि है।
(ग) तब तौ छबि पीवत जीवत हे, .................बिललात महा दुःख दोष भरे।
(घ) ऐसो हियो हित पत्र पवित्र ..... टूक कियौ पर बाँचि न देख्यौ।
सरोज के नव-वधू रूप का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
निम्नलिखित गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए-
(क) 'कभी-कभी जो लोग ऊपर से बेहया दिखते हैं, उनकी जड़ें काफ़ी गहरी पैठी रहती हैं। ये भी पाषाण की छाती फाड़कर न जाने किस अतर गह्वर से अपना भोग्य खींच लाते हैं।'
(ख) 'रूप व्यक्ति-सत्य है, नाम समाज-सत्य। नाम उस पद को कहते हैं जिस पर समाज की मुहर लगी होती है। आधुनिक शिक्षित लोग जिसे 'सोशल सैक्शन' कहा करते हैं। मेरा मन नाम के लिए व्याकुल है, समाज द्वारा स्वीकृत, इतिहास द्वारा प्रमाणित, समष्टि-मानव की चित्त-गंगा में स्नात!'
(ग) 'रूप की तो बात ही क्या है! बलिहारी है इस मादक शोभा की। चारों ओर कुपित यमराज के दारुण निःश्वास के समान धधकती लू में यह हरा भी है और भरा भी है, दुर्जन के चित्त से भी अधिक कठोर पाषाण की कारा में रुद्ध अज्ञात जलस्रोत से बरबस रस खींचकर सरस बना हुआ है।'
(घ) हृदयेनापराजितः! कितना विशाल वह हृदय होगा जो सुख से, दुख से, प्रिय से, अप्रिय से विचलति न होता होगा! कुटज को देखकर रोमांच हो आता है। कहाँ से मिलती है यह अकुतोभया वृत्ति, अपराजित स्वभाव, अविचल जीवन दृष्टि!'
'नाम' क्यों बड़ा है? लेखक के विचार अपने शब्दों में लिखिए।
कुटज को 'गाढ़े का साथी' क्यों कहा गया है?
निम्नलिखित का आशय स्पष्ट कीजिए-
(क) बहुत दिनान को अवधि आसपास परे/खरे अरबरनि भरे हैं उठि जान को
(ख) मौन हू सौं देखिहौं कितेक पन पालिहौ जू/कूकभरी मूकता बुलाय आप बोलिहै।
(ग) तब तौ छबि पीवत जीवत हे, अब सोचन लोचन जात जरे।
(घ) सो घनआनंद जान अजान लौं टूक कियौ पर वाँचि न देख्यौ।
(ङ) तब हार पहार से लागत हे, अब बीच में आन पहार परे।
निम्नलिखित पंक्तियों में प्रयुक्त अलंकारों की पहचान कीजिए।
(क) कहि कहि आवन छबीले मनभावन को, गहि गहि राखति ही दैं दैं सनमान को।
(ख) कूक भरी मूकता बुलाए आप बोलि है।
(ग) अब न घिरत घन आनंद निदान को।
घनानंद की रचनाओं की भाषिक विशेषताओं को अपने शब्दों में लिखिए।
प्रथम सवैये के आधार पर बताइए कि प्राण पहले कैसे पल रहे थे और अब क्यों दुखी हैं?
कवि ने किस प्रकार की पुकार से 'कान खोलि है' की बात कही है?
कवि मौन होकर प्रेमिका के कौन से प्रण पालन को देखना चाहता है?
कवि ने 'चाहत चलन ये संदेसो ले सुजान को' क्यों कहा है?
लोकोक्तियों का संदर्भ सहित अर्थ स्पष्ट कीजिए।
(क) चोर की दाढ़ी में तिनका
(ख) ना जाने केहि भेष में नारायण मिल जाएँ
(ग) चोर के घर छिछोर पैठा
(घ) यह म्याऊँ का ठौर था